BA Semester-1 Pracheen Bhartiya Itihas - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2636
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास

प्रश्न- उत्तर वैदिक काल के शासन प्रबन्ध की रूपरेखा पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-

ऋग्वैदिक राजनीतिक जीवन में उत्तरवैदिक काल में आकर कई परिवर्तन हो गये। इस काल में कबीलाई संरचना में दरार पड़ने लगी तथा क्षेत्र आधारित राज्यों की स्थापना होने लगी।

इस समय भारत का समस्त पश्चिमी भाग आर्यों के अधिकार में था। उनके प्रभाव क्षेत्र के विकसित होने के परिणामस्वरूप उनकी सभ्यता और संस्कृति का भी विकास होना शुरू हो गया। बाद में दक्षिण भारत में इनका विस्तार हुआ। आर्यों ने नए-नए प्रदेश जीतकर उन प्रदेशों में नवीन राज्यों की स्थापना की। इस समय राजाओं में सम्राट बनाने की महत्त्वाकांक्षा का भी उदय हुआ। कुरु, पान्चाल और काशी मुख्य राज्य बन चुके थे। मगध, कलिंग और विदेह के राजाओं में सम्राट बनने की प्रवृत्ति उत्पन्न हुई। शक्तिशाली राजाओं ने अपने पौरुष और ऐश्वर्य के प्रदर्शन के लिए बड़े-बड़े यज्ञ करना आरम्भ कर दिया। साम्राज्य की लिप्सा बढ़ने लगी और सामन्तवादी प्रवृत्तियों का विकास भी होने लगा। एक ओर राजतन्त्र संगठित हो रहा था और दूसरी ओर प्रजातान्त्रिक भावनाओं का विकास हो रहा था। सर्वप्रथम उत्तर वैदिक काल में ही विशाल नगरों का उल्लेख मिलता है।

आर्य अब तक यमुना, ऊपरी गंगा और सदानीरा से सिंचित उर्वर मैदानों को जीतकर अपने अधीन कर चुके थे। दक्षिण में विदर्भ तक उनका प्रसार हो चुका था। सरस्वती से गंगा के दोआब तक फैला हुआ मध्यप्रदेश अब आर्य-संस्कृति का प्रमुख केन्द्र था। धीरे-धीरे ये लोग इस क्षेत्र की ओर भी विस्तार करते गए।

राजा के अधिकार में वृद्धि - उत्तर वैदिक काल में बाह्लीक, प्रतिपीय, परीक्षित और जनमेजय जैसे प्रतापी राजाओं का उल्लेख मिलता है। परीक्षित का वर्णन विश्वजनीन राजा के रूप में अथर्ववेद में हुआ है। ऐसी स्थिति में राजा के अधिकार में वृद्धि होना स्वाभाविक ही था। राज्य के आकार में वृद्धि हुई, जातियों का सर्वतोभावेन सम्मिश्रण हुआ और विभिन्न राजाओं के सफल नेतृत्व में अनेक युद्धों में उनकी जीत हुई। इसके फलस्वरूप राज्य का क्षेत्र विस्तृत हुआ और राजा के अधिकार में वृद्धि भी। राजा लोग अब अपने को विश्वजनीन, सार्वभौम, सम्राट, चक्रवर्ती इत्यादि बनाने के प्रयत्न में लग गए। एकराट् शब्द का तात्पर्य समझ में नहीं आता, फिर भी इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि राजा अपने को स्वतन्त्र स्वामी होने या बनाने का दावेदार समझने लगा था।

विभिन्न दिशाओं में विभिन्न प्रकार की राज्य संस्थाएँ स्थिर-सी हो चुकी थीं। प्राची दिशा में साम्राज्य के अभिषेक होते थे और वहाँ के राजा सम्राट कहलाते थे। इसी प्रकार दक्षिण दिशा में सत्वत् थे। इन लोगों में भौज्य राज्य संस्था थी और वहाँ के प्रमुख शासक भोज कहलाते थे। प्रतीची दिशा में नीच्य और अपाच्य लोगों में स्वराज्य राज्य संस्था थी और वहाँ के राजा स्वराट कहलाते थे। उदीची दिशा में हिमालय के परे उत्तर - कुरु और उत्तर मद्रों के जो जनपद थे, उनमें वैराज्य-प्रणाली थी, वे विराट राजहीन - जनपद थे। ध्रुवा- मध्यमां-प्रतिष्ठा दिशा में कुरु - पांचाल - वंश और उशीनगर लोगों में राज्य की प्रथा थी। वहाँ के राजा ठीक राजा थे और यही कहलाते थे। मध्य देश और प्राची के सिवा सभी जगह एक राज्य की प्रणाली नहीं थी। पंजाब से बराबर महाराष्ट्र तक 'संघराज्यों' की एक मेखला थी। आर्यों के राज्य संस्था की आधारशिलाएँ इसी उत्तर- वैदिक युग में रखी गई। भारतवर्ष में व्यक्तित्व विकास का यही युग था।

इस काल की राजनीतिक परम्परा में सार्वभौम, अधिराज्य आदि विविध सत्ताओं का अभ्युदय हुआ। राजागण वाजपेय, राजसूय और अश्वमेघ का अनुष्ठान कर अपनी उत्तरोत्तर प्रगति का परिचय देने लगे। ऐतरेय और शतपथ ब्राह्मणों में कुछ ऐसे राजाओं के नाम हैं, जिन्होंने अश्वमेध के अतिरिक्त 'ऐद्रमहाभिषेक' भी कराया था। राज्य की सीमाओं की वृद्धि के साथ ही उनके अधिकार भी बढ़ते जाते थे और साथ ही पदवियाँ भी जैसी अधिराज, राजाधिराज, सम्राट, विराट्, एकराट और सार्वभौम। गोपथ ब्राह्मण के अनुसार राजा को राजसूय यज्ञ करना चाहिए, सम्राट् को वाजपेय, स्वराट् को अश्वमेघ, विराट को पुरुषमेघ और सर्वराट को सर्वमेध।

आपस्तम्ब श्रोतसूक्त के अनुसार अश्वमेघ यज्ञ केवल सार्वभौम राजा ही कर सकता है।

उत्तरवैदिक काल में राजा के अधिकार में जो वृद्धि हुई, उसके कई प्रमाण मिलते हैं। धीरे-धीरे वंशानुगत राजाओं की परम्परा प्रतिष्ठित होती गई और 'चुनाव' अब मात्र एक औपचारिकता के रूप में रह गया। राज्याभिषेक - प्रणाली से मात्र इतना स्पष्ट होता है कि राजा के लिए राज्य के पदाधिकारी रत्रियों का सहयोग और अनुमोदन प्राप्त करना आवश्यक समझा जाता था। राजा का महत्त्व काफी बढ़ गया था। यह राज्याभिषेक की परिवर्द्धित महत्ता से सिद्ध है। उत्तरवैदिक काल में अनेक राज्य कर्मचारी राज्याभिषेक में सम्मिलित होते थे। शतपथ ब्राह्मण में रत्रियों की संख्या 11 दी गई है सेनानी, पुरोहित, युवराज, महिषि, सूत, ग्रामणी और पालागल ( राजा का मित्र और विदूषक का पूर्वज)। राजा का अभिषेक सत्रह प्रकार के जलों से होता था। राज्याभिषेक के सिलसिले में पुरोहित कहता था “नियमों का पालन करने वाला तथा विघ्नों का निवारण करने वाला व्यक्ति प्रजा में स्थैर्य प्राप्त करता है।" राष्ट्र के बल, श्री और यश के लिए इन्द्र की इन्द्रिय से मैं तुम्हारा अभिषेक करता हूँ।" इसके उत्तर में राजा कहता था, "प्रजा की श्री मेरा सिर है, उसका यश मेरा मुख है, उसका तेज मेरे केश और श्मश्रु है। मेरी जिह्वा प्रजा के कल्याण की बात कहे प्रजा का उल्लास मेरा मन है जनता में राजा प्रतिष्ठित है।" राज्याभिषेक करते हुए पुरोहित उसे प्रजा और राष्ट्र के प्रति जागरूक रहने की याद दिलाता था। अतः, राजा प्रजा के प्रति अपने उत्तरदायित्व को समझता था।

राजा युद्ध में अब भी सेना का नेतृत्व करता था, यद्यपि सेना का साधारण संचालक सेनानी था। दुष्टों का दमन कर वह धर्म की रक्षा और प्रतिष्ठा करता था। यह कहना कठिन है कि समस्त भूमि का स्वामी वह था अथवा नहीं, परन्तु इतना निःसन्देह कहा जा सकता है कि जमीन पर उसका बहुत कुछ स्वत्व था। देने और छीनने का अधिकार उसे था। राजा राजदण्ड का भी उपयोग करता था। इन कारणों से उसके अधिकार में काफी वृद्धि हुई थी। जनता को 'बलि', 'शुल्क' और 'भाग' कर के रूप में देना पड़ता था। राजा शक्तिशाली होता जा रहा था, परन्तु उसकी स्वेच्छाचारिता सर्वथा निर्विरोध नहीं जाती थी। अभिषेक के नियम में कुछ ऐसी विधि थी, जिसके अनुसार राजा को सिंहासन से उतरना पड़ता था और ब्राह्मणों का अभिनन्दन करना पड़ता था। यो राजा इच्छानुसार अपनी प्रजा को सताता था और दासों को मनमाने ढंग से निर्वासित भी करता था। राजा और ब्राह्मणों के बीच संघर्ष की कहानी उत्तरवैदिक कालीन ग्रन्थों में मिलती है। साधारणतः राजा क्षत्रिय होते थे। अत्याचारी राजाओं के निष्कासन का भी प्रमाण मिलता है। एक राजा को उसकी असन्तुष्ट प्रजा ने मार भगाया और स्थपति चाक्र ने उसे सिंहासन पर पुनः प्रतिष्ठित किया। सभा और समिति अब भी थी, पर राज्याधिकार में वृद्धि होने के कारण इन संस्थाओं का महत्त्व कम हो गया था। यों अथर्ववेद में कहा गया है कि राजा और इन संस्थाओं में सद्भावना अपेक्षित है। राज्याधिकार बढ़ने के फलस्वरूप शासन में राज्य का भी विस्तार होना स्वाभाविक ही है। उपर्युक्त कर्मचारियों के अतिरिक्त सचिव उपाधि का उल्लेख भी उत्तरवैदिक काल में मिलता है। इस काल में कर लगाने की प्रथा और लगान प्रणाली का भी विकास हुआ। राजा समेत कुल मिलाकर 12 रत्रित होते थे। पंचविंशब्राह्मण में रत्रियों को वीर भी कहा गया है।

सभा समिति - उत्तरवैदिककाल में 'सभा' राज संस्था हो गई थी। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार राजा भी उसमें उपस्थित रहता था। 'समिति' राज्य की केन्द्रीय संस्था थी। समिति के निर्णय वाद-विवाद के पश्चात् होते थे। उपनिषद्काल में भी समिति राज संस्था थी। परन्तु उसमें अब दार्शनिक और धार्मिक वाद-विवाद भी होते थे। समिति की अध्यक्षता राजा स्वयं करता था। सभा को अथर्ववेद में 'नरिष्ठा' कहा गया है। ग्राम के समस्त विषय सभा के अधीन होते थे और वहाँ भी वाद-विवाद के बाद निर्णय लिया जाता था। सभा में आमोद-प्रमोद का भी प्रबन्ध था। सभासदों को अत्यधिक सम्मान प्राप्त था। किन्तु, धीरे-धीरे 'सभा' और 'समिति' का महत्त्व घटने लगा था।

अन्य अधिकारी - सौ गाँवों का अफसर पति और सीमान्त का शासक स्थपति कहलाता था। प्रान्तीय शासन की नियमित व्यवस्था का प्रारम्भ भी इसी काल में हुआ, जैसा कि स्थपति और शतपथि के स्वरूपों से स्पष्ट है। ग्राम अधिकृत सबसे निम्न स्तर के कर्मचारी थे और राजा स्वयं उनकी नियुक्ति करता था। पुलिस का भी प्रबन्ध हो चुका था। उग्र और जीवग्रह नामक दो पुलिस अधिकारियों का उल्लेख हमें सिलसिले में मिलता है।   इस न्याय विभाग का सर्वोच्च पदाधिकारी राजा ही होता था, परन्तु यह कार्य   अधिकतर अध्यक्ष किया करता था। राजा के समक्ष अपील अथवा महत्त्वपूर्ण मुकदमें ही भेजे जाते थे। सभासदों से राजा को इस कार्य में सहायता मिलती थी। छोटे मुकदमों का फैसला ग्राम सभा ही करती थी। दैवी न्याय का व्यवहार भी अज्ञात नहीं था। व्यक्तिगत प्रतिशोध के भी उदाहरण मिलते हैं। घरेलू मुकदमें पंचायत में सुलझाए जाते थे। सभा भी राजकीय न्यायालय के रूप में कार्य करती थी।

ऐतरेय ब्राह्मण एवं शतपथ ब्राह्मण के अनुसार अग्रलिखित अधिकारी प्रमुख माने जाते थे पुरोहित, राजन्य, महिषि, वावाता, परिवृक्ती, सूत, सेनानी, ग्रामणी, क्षात्रि, संग्रहिति, भागदुध, अक्षावाप, गोविकर्तन, पालागल, रथकार, तक्षन् इत्यादि। छान्दोग्य उपनिषद् में केकय देश का शासक अश्वपति गर्व के साथ कहता है- “मेरे राज्य में चोर, ठग, मद्यप, कर्महीन और मूर्ख नहीं हैं। "

इस प्रकार उत्तर वैदिक काल में राजनीतिक संगठन में काफी परिवर्तन हुआ। शक्तिशाली राज्यों की स्थापना हुई और राज्याधिकार में भी वृद्धि हुई। यही नहीं शासन प्रणाली में भी स्थिरता आई और शासन का स्वरूप निश्चित हो गया जो कालान्तर में विकसित भारत के प्रशासन का आधार बना।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास को समझने हेतु उपयोगी स्रोतों का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- प्राचीन भारत के इतिहास को जानने में विदेशी यात्रियों / लेखकों के विवरण की क्या भूमिका है? स्पष्ट कीजिए।
  3. प्रश्न- पुरातत्व के विषय में बताइए। पुरातत्व के अन्य उप-विषयों व उसके उद्देश्य व सिद्धान्तों से अवगत कराइये।
  4. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  5. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के विषय में आप क्या जानते हैं?
  6. प्रश्न- भास की कृति "स्वप्नवासवदत्ता" पर एक लेख लिखिए।
  7. प्रश्न- 'फाह्यान पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
  8. प्रश्न- दारा प्रथम तथा उसके तीन महत्वपूर्ण अभिलेख के विषय में बताइए।
  9. प्रश्न- आपके विषय का पूरा नाम क्या है? आपके इस प्रश्नपत्र का क्या नाम है?
  10. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान के अध्ययन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  11. प्रश्न- शिलालेख, पुरातन के अध्ययन में किस प्रकार सहायक होते हैं?
  12. प्रश्न- न्यूमिजमाटिक्स की उपयोगिता को बताइए।
  13. प्रश्न- पुरातत्व स्मारक के महत्वपूर्ण कार्यों पर प्रकाश डालिए
  14. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता के विषय में आप क्या समझते हैं?
  15. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता के सामाजिक व्यवस्था व आर्थिक जीवन का वर्णन कीजिए।
  16. प्रश्न- सिन्धु नदी घाटी के समाज के धार्मिक व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  17. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता की राजनीतिक व्यवस्था एवं कला का विस्तार पूर्वक वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के नामकरण और उसके भौगोलिक विस्तार की विवेचना कीजिए।
  19. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता की नगर योजना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- हड़प्पा सभ्यता के नगरों के नगर- विन्यास पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  21. प्रश्न- हड़प्पा संस्कृति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  22. प्रश्न- सिन्धु घाटी के लोगों की शारीरिक विशेषताओं का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
  23. प्रश्न- पाषाण प्रौद्योगिकी पर टिप्पणी लिखिए।
  24. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के सामाजिक संगठन पर टिप्पणी कीजिए।
  25. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के कला और धर्म पर टिप्पणी कीजिए।
  26. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के व्यापार का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  27. प्रश्न- सिंधु सभ्यता की लिपि पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  28. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता में शिवोपासना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  29. प्रश्न- सैन्धव धर्म में स्वस्तिक पूजा के विषय में बताइये।
  30. प्रश्न- ऋग्वैदिक अथवा पूर्व वैदिक काल की सभ्यता और संस्कृति के बारे में आप क्या जानते हैं?
  31. प्रश्न- विवाह संस्कार से सम्पादित कृतियों का वर्णन कीजिए तथा महत्व की व्याख्या कीजिए।
  32. प्रश्न- वैदिक काल के प्रमुख देवताओं का परिचय दीजिए।
  33. प्रश्न- ऋग्वेद में सोम देवता का महत्व बताइये।
  34. प्रश्न- वैदिक संस्कृति में इन्द्र के बारे में बताइये।
  35. प्रश्न- वेदों में संध्या एवं ऊषा के विषय में बताइये।
  36. प्रश्न- प्राचीन भारत में जल की पूजा के विषय में बताइये।
  37. प्रश्न- वरुण देवता का महत्व बताइए।
  38. प्रश्न- वैदिक काल में यज्ञ का महत्व बताइए।
  39. प्रश्न- पंच महायज्ञ' पर टिप्पणी लिखिए।
  40. प्रश्न- वैदिक देवता द्यौस और वरुण पर टिप्पणी लिखिए।
  41. प्रश्न- वैदिक यज्ञों की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- वैदिक देवता इन्द्र के विषय में लिखिए।
  43. प्रश्न- वैदिक यज्ञों के सम्पादन में अग्नि के महत्त्व को व्याख्यायित कीजिए।
  44. प्रश्न- उत्तरवैदिक कालीन धार्मिक विश्वासों एवं कृत्यों के विषय में आप क्या जानते हैं?
  45. प्रश्न- वैदिक काल में प्रकृति पूजा पर एक टिप्पणी लिखिए।
  46. प्रश्न- वैदिक संस्कृति की विशेषताएँ बताइये।
  47. प्रश्न- अश्वमेध पर एक टिप्पणी लिखिए।
  48. प्रश्न- आर्यों के आदिस्थान से सम्बन्धित विभिन्न मतों की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।
  49. प्रश्न- ऋग्वैदिक काल में आर्यों के भौगोलिक ज्ञान का विवरण दीजिए।
  50. प्रश्न- आर्य कौन थे? उनके मूल निवास स्थान सम्बन्धी मतों की समीक्षा कीजिए।
  51. प्रश्न- वैदिक साहित्य से आपका क्या अभिप्राय है? इसके प्रमुख अंगों की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  52. प्रश्न- आर्य परम्पराओं एवं आर्यों के स्थानान्तरण को समझाइये।
  53. प्रश्न- वैदिक कालीन धार्मिक व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
  54. प्रश्न- ऋत की अवधारणा का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  55. प्रश्न- वैदिक देवताओं पर एक विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  56. प्रश्न- ऋग्वैदिक धर्म और देवताओं के विषय में लिखिए।
  57. प्रश्न- 'वेदांग' से आप क्या समझते हैं? इसके महत्व की विवेचना कीजिए।
  58. प्रश्न- वैदिक कालीन समाज पर प्रकाश डालिए।
  59. प्रश्न- उत्तर वैदिककालीन समाज में हुए परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
  60. प्रश्न- उत्तर वैदिक काल में शासन प्रबन्ध का वर्णन कीजिए।
  61. प्रश्न- उत्तर वैदिक काल के शासन प्रबन्ध की रूपरेखा पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- वैदिक कालीन आर्थिक जीवन का विवरण दीजिए।
  63. प्रश्न- वैदिक कालीन व्यापार वाणिज्य पर एक निबंध लिखिए।
  64. प्रश्न- वैदिक कालीन लोगों के कृषि जीवन का विवरण दीजिए।
  65. प्रश्न- वैदिक कालीन कृषि व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- ऋग्वैदिक काल के पशुपालन पर टिप्पणी लिखिए।
  67. प्रश्न- वैदिक आर्यों के संगठित क्रियाकलापों की विवेचना कीजिए।
  68. प्रश्न- आर्य की अवधारणा बताइए।
  69. प्रश्न- आर्य कौन थे? वे कब और कहाँ से भारत आए?
  70. प्रश्न- भारतीय संस्कृति में वेदों का महत्त्व बताइए।
  71. प्रश्न- यजुर्वेद पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  72. प्रश्न- ऋग्वेद पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  73. प्रश्न- वैदिक साहित्य में अरण्यकों के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
  74. प्रश्न- आर्य एवं डेन्यूब नदी पर टिप्पणी लिखिये।
  75. प्रश्न- क्या आर्य ध्रुवों के निवासी थे?
  76. प्रश्न- "आर्यों का मूल निवास स्थान मध्य एशिया था।" विवेचना कीजिए।
  77. प्रश्न- संहिता ग्रन्थ से आप क्या समझते हैं?
  78. प्रश्न- ऋग्वैदिक आर्यों के धार्मिक विश्वासों के बारे में आप क्या जानते हैं?
  79. प्रश्न- पणि से आपका क्या अभिप्राय है?
  80. प्रश्न- वैदिक कालीन कृषि पर टिप्पणी लिखिए।
  81. प्रश्न- ऋग्वैदिक कालीन उद्योग-धन्धों पर टिप्पणी लिखिए।
  82. प्रश्न- वैदिक काल में सिंचाई के साधनों एवं उपायों पर एक टिप्पणी लिखिए।
  83. प्रश्न- क्या वैदिक काल में समुद्री व्यापार होता था?
  84. प्रश्न- उत्तर वैदिक कालीन कृषि व्यवस्था पर टिप्पणी लिखिए।
  85. प्रश्न- उत्तर वैदिक काल में प्रचलित उद्योग-धन्धों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए?
  86. प्रश्न- शतमान पर एक टिप्पणी लिखिए।
  87. प्रश्न- ऋग्वैदिक कालीन व्यापार वाणिज्य की विवेचना कीजिए।
  88. प्रश्न- भारत में लोहे की प्राचीनता पर प्रकाश डालिए।
  89. प्रश्न- ऋग्वैदिक आर्थिक जीवन पर टिप्पणी लिखिए।
  90. प्रश्न- वैदिककाल में लोहे के उपयोग की विवेचना कीजिए।
  91. प्रश्न- नौकायन पर टिप्पणी लिखिए।
  92. प्रश्न- सिन्धु घाटी की सभ्यता के विशिष्ट तत्वों की विवेचना कीजिए।
  93. प्रश्न- सिन्धु घाटी के लोग कौन थे? उनकी सभ्यता का संस्थापन एवं विनाश कैसे.हुआ?
  94. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता की आर्थिक एवं धार्मिक दशा का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- वैदिक काल की आर्यों की सभ्यता के बारे में आप क्या जानते हैं?
  96. प्रश्न- वैदिक व सैंधव सभ्यता की समानताओं और असमानताओं का विश्लेषण कीजिए।
  97. प्रश्न- वैदिक कालीन सभा और समिति के विषय में आप क्या जानते हैं?
  98. प्रश्न- वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति का वर्णन कीजिए।
  99. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के कालक्रम का निर्धारण कीजिए।
  100. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के विस्तार की विवेचना कीजिए।
  101. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता का बाह्य जगत के साथ संपर्कों की समीक्षा कीजिए।
  102. प्रश्न- हड़प्पा से प्राप्त पुरातत्वों का वर्णन कीजिए।
  103. प्रश्न- हड़प्पा कालीन सभ्यता में मूर्तिकला के विकास का वर्णन कीजिए।
  104. प्रश्न- संस्कृति एवं सभ्यता में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  105. प्रश्न- प्राग्हड़प्पा और हड़प्पा काल का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  106. प्रश्न- प्राचीन काल के सामाजिक संगठन को किस प्रकार निर्धारित किया गया व क्यों?
  107. प्रश्न- जाति प्रथा की उत्पत्ति एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  108. प्रश्न- वर्णाश्रम धर्म से आप क्या समझते हैं? इसकी मुख्य विशेषताएं बताइये।
  109. प्रश्न- संस्कार शब्द से आप क्या समझते हैं? उसका अर्थ एवं परिभाषा लिखते हुए संस्कारों का विस्तार तथा उनकी संख्या लिखिए।
  110. प्रश्न- प्राचीन भारतीय समाज में संस्कारों के प्रयोजन पर अपने विचार संक्षेप में लिखिए।
  111. प्रश्न- प्राचीन भारत में विवाह के प्रकारों को बताइये।
  112. प्रश्न- प्राचीन भारतीय समाज में नारी की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न- वैष्णव धर्म के उद्गम के विषय में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  114. प्रश्न- महाकाव्यकालीन स्त्रियों की दशा पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  115. प्रश्न- पुरातत्व अध्ययन के स्रोतों को बताइए।
  116. प्रश्न- पुरातत्व साक्ष्य के विभिन्न स्रोतों पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  117. प्रश्न- पुरातत्वविद् की विशेषताओं से अवगत कराइये।
  118. प्रश्न- पुरातत्व के विषय में बताइए। पुरातत्व के अन्य उप-विषयों व उसके उद्देश्य व सिद्धान्तों से अवगत कराइये।
  119. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  120. प्रश्न- पुरातात्विक स्रोतों से प्राप्त जानकारी के लाभों से अवगत कराइये।
  121. प्रश्न- पुरातत्व को जानने व खोजने में प्राचीन पुस्तकों के योगदान को बताइए।
  122. प्रश्न- विदेशी (लेखक) यात्रियों के द्वारा प्राप्त पुरातत्व के स्रोतों का विवरण दीजिए।
  123. प्रश्न- पुरातत्व स्रोत में स्मारकों की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
  124. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान के अध्ययन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  125. प्रश्न- शिलालेख, पुरातन के अध्ययन में किस प्रकार सहायक होते हैं?
  126. प्रश्न- न्यूमिजमाटिक्स की उपयोगिता को बताइए।
  127. प्रश्न- पुरातत्व स्मारक के महत्वपूर्ण कार्यों पर प्रकाश डालिए।
  128. प्रश्न- "सभ्यता का पालना" व "सभ्यता का उदय" से क्या तात्पर्य है?
  129. प्रश्न- विश्व में नदी घाटी सभ्यता के विकास पर प्रकाश डालिए।
  130. प्रश्न- चीनी सभ्यता के विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  131. प्रश्न- जियाहू एवं उबैद काल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  132. प्रश्न- अकाडिनी साम्राज्य व नॉर्ट चिको सभ्यता के विषय में बताइए।
  133. प्रश्न- मिस्र और नील नदी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  134. प्रश्न- नदी घाटी सभ्यता के विकास को संक्षिप्त रूप से बताइए।
  135. प्रश्न- सभ्यता का प्रसार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  136. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के विस्तार के विषय में बताइए।
  137. प्रश्न- मेसोपोटामिया की सभ्यता पर प्रकाश डालिए।
  138. प्रश्न- सुमेरिया की सभ्यता कहाँ विकसित हुई? इस सभ्यता की सामाजिक संरचना पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डालिए।
  139. प्रश्न- सुमेरियन सभ्यता के भारतवर्ष से सम्पर्क की चर्चा कीजिए।
  140. प्रश्न- सुमेरियन समाज के आर्थिक जीवन के विषय में बताइये। यहाँ की कृषि, उद्योग-धन्धे, व्यापार एवं वाणिज्य की प्रगति का उल्लेख कीजिए।
  141. प्रश्न- सुमेरियन सभ्यता में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  142. प्रश्न- सुमेरियन सभ्यता की लिपि का विकासात्मक परिचय दीजिए।
  143. प्रश्न- सुमेरियन सभ्यता की प्रमुख देनों का मूल्यांकन कीजिए।
  144. प्रश्न- प्राचीन सुमेरिया में राज्य की अर्थव्यवस्था पर किसका अधिकार था?
  145. प्रश्न- बेबीलोनिया की सभ्यता के विषय में आप क्या जानते हैं? इस सभ्यता की सामाजिक.विशिष्टताओं का उल्लेख कीजिए।
  146. प्रश्न- बेबीलोनिया के लोगों की आर्थिक स्थिति का मूल्यांकन कीजिए।
  147. प्रश्न- बेबिलोनियन विधि संहिता की मुख्य धाराओं पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  148. प्रश्न- बेबीलोनिया की स्थापत्य कला पर प्रकाश डालिए।
  149. प्रश्न- बेबिलोनियन सभ्यता की प्रमुख देनों का मूल्यांकन कीजिए।
  150. प्रश्न- असीरियन कौन थे? असीरिया की सामाजिक व्यवस्था का उल्लेख करते हुए बताइये कि यह समाज कितने वर्गों में विभक्त था?
  151. प्रश्न- असीरिया की धार्मिक मान्यताओं को स्पष्ट कीजिए। असीरिया के लोगों ने कला एवं स्थापत्य के क्षेत्र में किस प्रकार प्रगति की? मूल्यांकन कीजिए।
  152. प्रश्न- प्रथम असीरियाई साम्राज्य की स्थापना कब और कैसे हुई?
  153. प्रश्न- "असीरिया की कला में धार्मिक कथावस्तु का अभाव है।' स्पष्ट कीजिए।
  154. प्रश्न- असीरियन सभ्यता के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  155. प्रश्न- प्राचीन मिस्र की सभ्यता के विषय में आप क्या जानते हैं? मिस्र का इतिहास जानने के प्रमुख साधन बताइये।
  156. प्रश्न- प्राचीन मिस्र का समाज कितने वर्गों में विभक्त था? यहाँ की सामाजिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  157. प्रश्न- मिस्र के निवासियों का आर्थिक जीवन किस प्रकार का था? विवेचना कीजिए।
  158. प्रश्न- मिस्रवासियों के धार्मिक जीवन का उल्लेख कीजिए।
  159. प्रश्न- मिस्र का समाज कितने भागों में विभक्त था? स्पष्ट कीजिए।
  160. प्रश्न- मिस्र की सभ्यता के पतन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  161. प्रश्न- चीन की सभ्यता के विषय में आप क्या जानते हैं? इस सभ्यता के इतिहास के प्रमुख साधनों का उल्लेख करते हुए प्रमुख राजवंशों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  162. प्रश्न- प्राचीन चीन की सामाजिक व्यवस्था का उल्लेख कीजिए।
  163. प्रश्न- चीनी सभ्यता के भौगोलिक विस्तार का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  164. प्रश्न- चीन के फाचिया सम्प्रदाय के विषय में बताइये।
  165. प्रश्न- चिन राजवंश की सांस्कृतिक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।

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